मंगलवार, 29 नवंबर 2011

ज़िंदगी का कुआँ



जाने क्यों तुम इसे 
मौत का कुआं कहते हो
मेरे लिए तो इसका हर ज़र्रा
ज़िंदगी से बना है
कभी ध्यान से देखो 
ये ज़िंदगी का कुआँ है

जैसे ज़िंदगी हमें
गोल गोल नचाती है 
वैसे मेरी मोटर भी 
चक्करों मे चलती है
रंग बदलता है जीवन 
नित नए जैसे
वैसे ही ये अपने
गियर बदलती है
ध्यान भटकने देना 
दोनों जगह मना है
कभी ध्यान से देखो 
ये ज़िंदगी का कुआँ है

रफ्तार सफलता की
ऊपर ले जाती है 
और आकांक्षा गुरुत्व है 
संतुलन उस से ही है
यहाँ टिकता वही है
जो सामंजस्य बना चला है
कभी ध्यान से देखो 
ये ज़िंदगी का कुआँ है

छोड़ो इन बातों को
ये सब तो बस बातें है
कभी आओ मेरे घर
मेरा घर देखो
इस कुयेँ के कारण ही
आज वहाँ भोजन बना है 
फिर कैसे कहते हो तुम
कि ये मौत का कुआँ है

कभी ध्यान से देखो 
ये ज़िंदगी का कुआँ है

शनिवार, 19 नवंबर 2011

हक़




हुस्न की धूप, प्यार की बयार दे दो तुम,
ऐ खुदा ! वो सुबह एक बार दे दो तुम ।

उसको पाकर ही मेरे दिल को चैन आएगा 
मेरा सुकून वो मेरा करार दे दो तुम 

शहर फिजूल है, ये शहर अपने पास रखो 
इंतेजा है कि बस  कूचा-ए-यार दे दो तुम

बड़े दिनों के हैं ताल्लुकात तेरे मेरे 
दोस्ती निभाओ, अमां यार दे दो तुम 

मेरे जीने का फैसला तुझे ही करना है
मुझे घर दो चाहे मज़ार दे दो तुम 

मेरा हक़ है जो मांगा है मैंने तुझसे खुदा 
मैंने कब मांगा के मुझको उधार दे दो तुम 

शनिवार, 12 नवंबर 2011

इश्क़


ये कैसा व्यापार हुआ,
दुश्मन सारा बाज़ार हुआ |

दिल लेकर दिल दे बैठे तो,
क्यूँ जग में हाहाकार हुआ|

इश्क़ अजब ही नदी है साहिब
यहाँ जो डूबा सो पार हुआ|

दीदों को न भाया तब से कुछ 
जब से उनका दीदार हुआ| 
  
अब दवा इश्क़ की कौन करे 
है हर कोई बीमार हुआ |

पहले था काम का "विक्रम" भी 
जो इश्क़ मे है बेकार हुआ|


लोकप्रिय पोस्ट