बेशक हार हुयी है मेरी
पर हारा नहीं हूँ मैं
मुझको लाचार न समझो तुम
बेचारा नहीं हूँ मैं
रुका हूँ, गिरा हूँ, ज़मीं पर पड़ा हूँ
पर ज़िंदा हूँ अभी,
किस्मत का मारा नहीं हूँ मैं
फिर उठूँगा, बढ़ूँगा,
फ़लक तक चढ़ूँगा
मैं सूरज हूँ,
उगना ढलना आदत है मेरी
टूट के पल में खो जाये
वो तारा नहीं हूँ मैं
बेशक हार हुयी है मेरी
पर अभी हारा नहीं हूँ मैं.....
सकारात्मकता और सुंदर बिम्बों से सजी लघु कविता वास्तव में सुंदर और प्रेरणादायी है। बधाई। खासकर - मैं सूरज हूं, उगना ढलना आदत है मेरी, टूट के पल में खो जाए, वो तारा नहीं हूं मैं।
जवाब देंहटाएंजीना इसी का नाम है...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंnice lines
जवाब देंहटाएंnice lines
जवाब देंहटाएंBahut bahut shukriya....:)
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार।
जवाब देंहटाएंGreat
जवाब देंहटाएंShandaar Sir......!
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