रविवार, 4 मार्च 2012

इम्तिहाँ



तू असलियत में क्या है, आज देख लेते हैं ।
तू है पत्थर या खुदा है, आज देख लेते हैं ।

इम्तिहाँ मेरा लिया तूने रोज़ रोज़ खूब । 
आज तेरा इम्तिहाँ है, आज देख लेते हैं ।

मैं तुझे जानता, पहचानता, मानता नहीं ।
तेरे सच से कौन आशना है, आज देख लेते हैं ।

मैं भरोसा करूँ तेरा, या न करूँ, है मेरी मर्ज़ी
क्या तुझे खुद पे भरोसा है, आज देख लेते हैं ।


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