इजहार-ए-इश्क़ तो दोनों ने किया था
वो भी बदल गयी मैं भी मुकर गया
इक अज़ीज़ दोस्त था दिल के करीब था
मुसीबत के वक़्त में जाने किधर गया
ढूंढती रही नज़रे तुझको ही चारो ओर
नज़र को नहीं मिला, नज़र से उतर गया
कोई दर्द ही दे दे मुझे महसूस करने को
ये तो पता चले कि हूँ ज़िंदा कि मर गया
मज़मून ग़ज़ल का वो कभी जान न पाये
बस कहते रहे "हर शेर तेरा बे-बहर गया"
तस्कीं तुम्हें देने न आएगा कोई विक्रम
बधाई उन्हे देने को है सारा शहर गया
वो भी बदल गयी मैं भी मुकर गया
इक अज़ीज़ दोस्त था दिल के करीब था
मुसीबत के वक़्त में जाने किधर गया
ढूंढती रही नज़रे तुझको ही चारो ओर
नज़र को नहीं मिला, नज़र से उतर गया
कोई दर्द ही दे दे मुझे महसूस करने को
ये तो पता चले कि हूँ ज़िंदा कि मर गया
मज़मून ग़ज़ल का वो कभी जान न पाये
बस कहते रहे "हर शेर तेरा बे-बहर गया"
तस्कीं तुम्हें देने न आएगा कोई विक्रम
बधाई उन्हे देने को है सारा शहर गया
Waah!! bahut khoob...
जवाब देंहटाएंbehtarin/ lazabab/
जवाब देंहटाएंठीक है भाई-
जवाब देंहटाएंपढवाते रहें-
शुभकामनायें-
Wah..bahut khoob!
जवाब देंहटाएं