दिल नहीं मानता कि हैं वो बेवफा हो गए
कोई ख़ता हुई है जिससे हैं वो ख़फ़ा हो गए
दिल नहीं मानता कि........
जो थे जीने का मकसद, मेरे मुस्कुराने कि वजह
आज वो दर्द-ओ-ग़म कि वजह हो गए
मेरे दर्द को सुन कर रो पड़ते थे जो
मेरी मौत से भी वो बेपरवाह हो गए
फिर भी दिल नहीं मानता कि हैं वो बेवफा हो गए
कोई खता हुई है जिससे हैं वो ख़फ़ा हो गए...
पहले कहते थे कि मेरे होने से आती है चमन में बहार
फिर क्यूँ हम आज हवा-ए-खिज़ा हो गए
कुछ भी तो नहीं बदला इस जहां में मगर
हम तुम बदल के क्या से क्या हो गए
कोई बता दे मुझे मेरी मौत से पहले
क्या खता हुई हमसे, क्यूँ वो ख़फ़ा हो गए
दिल नहीं मानता कि हैं वो बेवफा हो गए
कोई खता हुई है जिससे हैं वो ख़फ़ा हो गए
दिल नहीं मानता कि........
sundar abhivyakti........badhai
जवाब देंहटाएंकुछ भी तो नहीं बदला इस जहां में मगर
जवाब देंहटाएंहम तुम बदल के क्या से क्या हो गए
इन पंक्तियों ने छू लिया...बहुत अच्छा लिख रहे है आप...ऐसे ही लेखन की शुभकामनाएं ....
साधुवाद!
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में स्वागत एवं शुभकामनायें......
excellent.....heart touching..keep it up!
जवाब देंहटाएंwaah kya likha hai bhai ekdum dil cheer ke rakh diye|
जवाब देंहटाएंmaja a gaya
दिल को छू लेने वाली एक सुंदर रचना ...sparkindians.blogspot.com
जवाब देंहटाएंसुंदर मनोभावों की सुंदर प्रस्तुति..... अच्छी लगी आपकी रचना विक्रम.....
जवाब देंहटाएंBeautiful as always.
जवाब देंहटाएंIt is pleasure reading your poems.
खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंaap sabhi ka bahut bahut dhanyavaad......aap sabhi ke prem aur aashirvaad k liye aabhari hu...isi prakar apne anuj ko prem dete rahe...dhanyavaad
जवाब देंहटाएंCha gaye bandhu.ab to lagta hai aapka nimantran sweekaar karna hi padega .bahut hi acchi tarah se vicharo ki abhivyakti.
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