शनिवार, 13 नवंबर 2010

ख़ता

दिल नहीं मानता कि हैं वो बेवफा हो गए
कोई ख़ता हुई है जिससे हैं वो ख़फ़ा हो गए
दिल नहीं मानता कि........

जो थे जीने का मकसद, मेरे मुस्कुराने कि वजह
आज वो दर्द-ओ-ग़म कि वजह हो गए
मेरे दर्द को सुन कर रो पड़ते थे जो
मेरी मौत से भी वो बेपरवाह हो गए
फिर भी दिल नहीं मानता कि हैं वो बेवफा हो गए
कोई खता हुई है जिससे हैं वो ख़फ़ा हो गए...

पहले कहते थे कि मेरे होने से आती है चमन में बहार
फिर क्यूँ  हम आज हवा-ए-खिज़ा हो गए
कुछ भी तो नहीं बदला इस जहां में मगर
हम तुम बदल के क्या से क्या हो गए
कोई बता दे मुझे मेरी मौत से पहले
क्या खता हुई हमसे, क्यूँ वो ख़फ़ा हो गए
दिल नहीं मानता कि हैं वो बेवफा हो गए
कोई खता हुई है जिससे हैं वो ख़फ़ा हो गए
दिल नहीं मानता कि........

12 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ भी तो नहीं बदला इस जहां में मगर
    हम तुम बदल के क्या से क्या हो गए

    इन पंक्तियों ने छू लिया...बहुत अच्छा लिख रहे है आप...ऐसे ही लेखन की शुभकामनाएं ....

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  2. साधुवाद!
    ब्लॉग जगत में स्वागत एवं शुभकामनायें......

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  3. दिल को छू लेने वाली एक सुंदर रचना ...sparkindians.blogspot.com

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  4. सुंदर मनोभावों की सुंदर प्रस्तुति..... अच्छी लगी आपकी रचना विक्रम.....

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  5. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  6. aap sabhi ka bahut bahut dhanyavaad......aap sabhi ke prem aur aashirvaad k liye aabhari hu...isi prakar apne anuj ko prem dete rahe...dhanyavaad

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  7. Cha gaye bandhu.ab to lagta hai aapka nimantran sweekaar karna hi padega .bahut hi acchi tarah se vicharo ki abhivyakti.

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