क्या वो पागल है, जो बेवजह मुस्कुराता है ?
पागल ही है, तभी सरे राह गुनगुनाता है |
अपनी ही धुन में वो गली गली घूमता है |
राह चलते जानवरों को तो कोई पागल ही चूमता है |
वो राहगीर है, उसका कोई घर बार बही है |
उसे किसी का, किसी को उसका इंतजार नहीं है |
बिना खाए पिए भी दिन रात मुस्कुराता है |
ऐसे ही इंसान को तो पागल कहा जाता है |
क्या वो पागल है........
हर तरफ आग है, है हर ओर बस नफरत का धुंआ,
एक दूजे कि जाँ ले रहे हैं हिन्दू मुसलमाँ |
पर उसे फर्क नहीं, वो तो मुस्कुराता है |
जलते चौराहों पर वो नाचता और गाता है |
खिड़की से देख उसे, मैं घबराता हूँ |
दरवाजा खोल, दौड़ उसके पास जाता हूँ |
पूँछता हूँ की क्यों खुश है ? कैसा इंसान है तू ?
ये बता हिन्दू है या कि मुसलमान है तू ?
ये सुनकर के वो और मुस्कुराता है ,
जवाब देकर वो हँसता और आगे बढ़ जाता है |
कहता है- "ना मै हिन्दू हूँ, ना हूँ मुसलमान मै |
इन वहशियों कि बस्ती में हूँ इकलौता इंसान मैं |
ये सब हो गए हैं देखो ना बिलकुल पागल |"
इतना कहकर के बढ़ गया आगे वो पागल |
उसको सुन कर के मैं सोच में पड़ जाता हूँ ,
"कौन पागल है ?" खुद से पूँछता लौट आता हूँ....
"कौन पागल है ?".......
वाह!!! बहोत खूब .........
जवाब देंहटाएं"कौन पागल है ?"
जवाब देंहटाएंSHAAYAD HUM HI PAAGAL HAIN....
SUNDAR RACHNA...
........बहुत खूब, लाजबाब !
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति .....
जवाब देंहटाएंकुछ ऐसी ही एक गद्य रचना किसी ब्लॉग पर पढ़ी थी....विचर समान थे किन्तु काव्य रूप में और सुन्दर लगा ....हृदय को झकझोरने वाली रचना .....
जवाब देंहटाएंबढ़ियाँ
वो नहीं तू पागल है या फिर मैं?
जवाब देंहटाएंवरना दोनों तो हैं ही , पक्का .
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जवाब देंहटाएंवो नहीं तू पागल है या फिर मैं?
जवाब देंहटाएंवरना दोनों तो हैं ही , पक्का .
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जवाब देंहटाएंबेटे ! मैंने इतनी टिपण्णी कर दी अब धन्यवाद की टिपण्णी तू भी कर जा मेरे ब्लॉग पे .
जवाब देंहटाएंआगे तेरा काम पड़ेगा मुझसे .
@शेखचिल्ली का बाप महोदय
जवाब देंहटाएंक्षमा करें आपकी टिप्पणियाँ निकालनी पड़ी...किन्तु मै यहाँ व्यापार नहीं कर रहा हूँ...
kamal ki rachna. sachchai bayan karti hui. dhanyabad.
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति लगी, सामयिक।
जवाब देंहटाएंपूँछता हूँ की क्यों खुश है ? कैसा इंसान है तू ?
जवाब देंहटाएंये बता हिन्दू है या कि मुसलमान है तू ?
ये सुनकर के वो और मुस्कुराता है ,
जवाब देकर वो हँसता और आगे बढ़ जाता है |
कहता है- "ना मै हिन्दू हूँ, ना हूँ मुसलमान मै |
इन वहशियों कि बस्ती में हूँ इकलौता इंसान मैं |
bahut sunder.
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जवाब देंहटाएंअजी सही है ... आज तो सोच समझ वाले ही पागल है ... थोडा पागलपन मिल जाए तो शायद समाज में शांति लौट आये ...
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंआप सभी की हौसलाफजाई के लिए धन्यवाद ......इससे और लिखने की प्रेरणा मिलती है
जवाब देंहटाएंप्रेम बनाये रखे|