मैं खुद दरिया हूँ, तुमसे मिलने मैं पार आऊँ कैसे ?
तुम्हें मैं अपने दिल का हाल सुनाऊँ कैसे ?
कई घरों मे लगी आग है बुझाई मैंने,
पर जो खुद मुझमे लगी है वो बुझाऊँ कैसे ?
मैं खुद........
मेरी लहरें तेरे साहिल को डुबो देती हैं,
तुमको छूने को मैं हाथ बढाऊँ कैसे ?
लोग सुन लेंगे तो कर देंगे वो बदनाम तुम्हें,
डर है रुसवाई का तो कहो तुमको मैं बुलाऊँ कैसे ?
मैं खुद........
कल तपूँगा धूप में फिर हवा में घुल जाऊंगा,
मिलूंगा गर्द से तो बादल में बदल जाऊंगा |
संग हवाओं के मैं तेरी गली आऊँगा,
तेरे बदन पे मै कुछ यूँ बरस जाऊँगा |
तुझे भिगोऊंगा खुद तुझमें डूब जाऊँगा |
बनके फुहार तेरी जुल्फों से उलझ जाऊँगा |
बूँद बन करके तेरे गालों से ढलक जाऊँगा |
चूम कर होंठ, तेरी गर्दन से उतर जाऊँगा |
है ये वादा के मिलूंगा मैं कल ही तुमसे,
पर ये जो रात घनी है वो बिताऊँ कैसे ?
मैं खुद........
मैं खुद दरिया हूँ, तुमसे मिलने मैं पार आऊँ कैसे ?
बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना ... इसमें ये लाइन जोड़ दें ... चल दरिया में डूब जाए ... हा हा
जवाब देंहटाएंWaah Bhai..........Lajwaab.....Dil Ko Cheer Kar Rakh Diya.........gr888888888...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति|
जवाब देंहटाएंvery gud post....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ,.......सांकेतिकता ने छू लिया...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकई घरों मे लगी आग है बुझाई मैंने,
जवाब देंहटाएंपर जो खुद मुझमे लगी है वो बुझाऊँ कैसे ?
fantabulos lines bro...u r just terrific..ummmmhhaa
Beautiful as always.
जवाब देंहटाएंIt is pleasure reading your poems.