ज़िन्दगी का ताना बाना बुनता है मिटाता है मन,
खुद के रचे इस इन्द्रजाल में खुद ही उलझ सा जाता है मन |
अपने जिन ख्वाबों का सिर पर ताज पहन कर तनता था ये,
आज उन्ही सपनों का बोझा क्यूँ कर ना सह पता है मन |
ज़िन्दगी का ताना बाना.....
कुछ सपनो की चादर ओढ़े, कहीं दुबक कर बैठा था बचपन |
अपने जिन सहज सरल सपनों को , उँगलियों पर गिनता था बचपन |
अपने सपनों की राहों पर रोज़ घूमने जाता था ये ,
आज उन्ही राहों पर बढ़ने, से क्यों है कतराता ये मन |
ज़िन्दगी का ताना बाना.....
ज़िन्दगी का ताना बाना बुनता है मिटाता है मन |
कुछ सपनो की चादर ओढ़े, कहीं दुबक कर बैठा था बचपन |
जवाब देंहटाएंअपने जिन सहज सरल सपनों को , उँगलियों पर गिनता था बचपन |
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया................ बहुत सुंदर ....रचना....
ज़िन्दगी का ताना बाना बुनता है मिटाता है मन,
जवाब देंहटाएंखुद के रचे इस इन्द्रजाल में खुद ही उलझ सा जाता है मन |
kya baat kahi hai vikram bhai
man to manmauji ji hai.......
jane kya kya .inderjal bunta hai............
तिलयार में छाया ब्लॉगरों का जादू .............संजय भास्कर
very gud..........u made me nostalgic about my childhood dreams...thanx 4 d post
जवाब देंहटाएंबचपन के सपनों को सुन्दरता से उकेरा है आपने....जाने क्यों बड़े होने क बाद हम उन सहज सरल सपनो को भूल जाते है???
जवाब देंहटाएंभावुकता से भरी पोस्ट.....बधाई
behatareen ..........
जवाब देंहटाएंअपने सपनों की राहों पर रोज़ घूमने जाता था ये ,
जवाब देंहटाएंआज उन्ही राहों पर बढ़ने, से क्यों है कतराता ये मन |
waaaaaah