रविवार, 28 नवंबर 2010

सजा

मेरे दिल में शमा-ए-इश्क जला कर के चल दिए |
मेरे इश्क को गलत वो बता कर के चल दिए |
पहली नज़र में ही था हमें घायल कर दिया,
क्या फायदा कि अब जो नज़र झुका कर के चल दिए |
मेरे दिल में........

उन्हें हमसे नहीं है इश्क, है ये उनके दिल कि बात |
किसी और के है वो, समझते हैं हम उनके जज़्बात |
पर उम्मीद के सहारे हमें जीने का हक तो है |
क्या हक था उन्हें, जो उम्मीदों का महल गिरा कर के चल दिए |
मेरे दिल में........

मुझको अगर है इश्क तो, मेरी ख़ता है क्या ?
परवाने की मौत की कहो तुम ही वज़ह है क्या ?
शमा ने जलाया है उसे मानोगे ये तुम भी,
अपने गुनाह की हमको सजा सुना कर के चल दिए |
मेरे दिल में........

मेरे दिल में शमा-ए-इश्क जला कर के चल दिए |

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