वो क्या समझेंगे मेरी जुदाई की तड़प
जिनका अपना कभी उनसे जुदा ना हुआ |
माना उनको मैंने रब, उनका सजदा किया,
पर मैं कभी उनके दिल का खुदा ना हुआ |
पूंछते हैं वो " चाहोगे कब तक हमें?"
शायद क़र्ज़ दिल का जब तक अदा ना हुआ |
वो क्या समझेंगे........
हम तड़पते रहे इश्क में रात दिन,
पर उन्हें तरस हम पर ज़रा ना हुआ |
प्यास से मर गए बीच नदिया के हम,
आब का एक कतरा पर मेरा ना हुआ |
नहीं गुजरा कभी एक पल एक दिन,
ज़ख्म दिल का मेरे जब हरा ना हुआ |
वो क्या समझेंगे........
वो क्या समझेंगे मेरी जुदाई की तड़प
जिनका अपना कभी उनसे जुदा ना हुआ |
बहुत सुन्दर और मार्मिक कविता है
जवाब देंहटाएंहम तड़पते रहे इश्क में रात दिन,
जवाब देंहटाएंपर उन्हें तरस हम पर ज़रा ना हुआ |
प्यास से मर गए बीच नदिया के हम,
आब का एक कतरा पर मेरा ना हुआ |
पूरी तड़प को अभिव्यक्त कर दिया आपने ...प्यार में अक्सर यह दौर चलते रहते हैं ...बहुत मार्मिक भाव की अभिव्यक्ति ...शुक्रिया
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
बहुत सुन्दर एवं भावभीनी रचना...
जवाब देंहटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंWaah Bhai Waah......Ye Hui Na Kuch Baat
जवाब देंहटाएंप्यास से मर गए बीच नदिया के हम,
जवाब देंहटाएंआब का एक कतरा पर मेरा ना हुआ |
its a pleasure reading ur poems.....thanx for these superb lines