गुरुवार, 4 नवंबर 2010

दस्तक

मुझे हर शह में बस तेरा, तेरा दीदार होता है |
तू होकर दूर भी, मेरे जिगर के पास होता है |
कि है ये रोग वो, जिसकी शफ़ा कोई नहीं होती |
ये दर्द-ए-ख़ास है, वो नाम जिसका प्यार होता है |


रातें बेजा गुजरती हैं, दिन भी बेकार होते है |
अपने महबूब से मिलने को दिल बेक़रार होते हैं |
नहीं इसकी ख़ता कोई, मगर फिर भी न जाने क्यूँ |
जिन्हें नज़रें मिलाती हैं, वो दिल गुनाहगार होते हैं |


चादर की सिलवटों में दबी खुशबू उसी की है |
हाँ इस झूमर कि हर आवाज़ भी लगती उसी की है |
मै दरवाज़े पे हर आहट को सुन क्यूँ कर के न चौकूँ |
कि हर आहट पे लगता है कि ये दस्तक उसी की है |

कि हर आहट पे लगता है कि ये दस्तक उसी की है |

1 टिप्पणी:

  1. मै दरवाज़े पे हर आहट को सुन क्यूँ कर के न चौकूँ |
    कि हर आहट पे लगता है कि ये दस्तक उसी की है |
    खुबसूरत शेर , दीवाली की शुभकामनायें

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