शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

नसीब

अभी शब् है के कोई ख्वाब सहेजें आओ |
अपनी सुबह को हसीं और भी कर दे आओ |
लम्हे खुशियों के जो बिखरे है आज |
उन्ही लम्हों को फिर से समेटें आओ |
अभी शब् है......

रात काली है मगर चांदनी की तो है आस |
हमको कुछ देर भी हुई तो है आज |
सुबह भूले थे मगर शाम को लौटें आओ |
अभी शब् है.....

बस करो अब अपने नसीब पर रोना |
न कहो के होगा वही जो है होना |
अपनी किस्मत को अपने हाँथ से लिख दें आओ |
अभी शब् है......

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