हर रोज़ सवेरे उठता हूँ,
खिड़की से बाहर तकता हूँ,
सोचता हूँ -
पौधों में कली लगी होगी,
अपनी बगिया भी सजी होगी,
हर तरफ फिजा छाई होगी |
और शायद तू आई होगी |
पर ये हवा बहार नहीं लाती है,
हर रोज़, तू नहीं आती है |
हर शाम मैं छत पर चढ़ता हूँ,
और लाख उम्मीदें गढ़ता हूँ |
सोचता हूँ -
ये आकाश आज गुलाबी होगा,
मौसम भी आज शराबी होगा |
हर ओर मदहोशी छाई होगी,
और शायद तू आई होगी |
पर उम्मीदें धोखा खाती हैं |
हर शाम तू नहीं आती है |
कल रात पवन कुछ यूँ मंद चली,
चहक उठी मेरी सूनी सी गली |
मौसम भी शराबी होने लगा,
ओर बीज फिजा के बोने लगा |
मेरे संग एक परछाई थी,
कल सपने में तू आई थी |
कल सपने में तू आई थी |
kaafi saadgi bhari kavita hai janab....sundar
जवाब देंहटाएंati sundar...
गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंशब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।
जवाब देंहटाएंbahut khoob ..............
जवाब देंहटाएंthanks........
जवाब देंहटाएंBeautiful presentation !
जवाब देंहटाएंbahut sunder kalpna.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता ......शुक्रिया
जवाब देंहटाएंगहराई से हर एक भाव को उतरा है आपने ...धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकितनी खूबसूरती से उतार दिया सबकुछ शब्दों में...
जवाब देंहटाएंसारी सोच, सारे मोहब्बत सिर्फ उसके लिए... जो आई थी कल रात सपनों में...
बहुत ही प्यारी कविता है...