इतना संताप सताता है,
अब सुख भी सहा न जाता है |
है हृदय भरा चीत्कारों से,
अब नहीं सुनाया जाता है |
रुँध गया कंठ, हे नीलकंठ !
करुणा का अश्रु न भाता है |
अब करो अंत इस जीवन का,
कोई राह नहीं दिखलाता है |
इतना संताप सताता है,
अब नही सुनाया जाता है |
हे प्राणनाथ ! निष्प्राण हूँ मैं,
अब कुछ भी नहीं लुभाता है |
इस शोक समाहित दुनिया में,
अब और रहा न जाता है |
इतना संताप सताता है,
अब नही सुनाया जाता है |
कुछ करो नाथ, इस तुच्छ साथ,
अब साथ नही कोई आता है |
इक आस है तेरी दया सिंधु,
मुख गीत तेरा ही गाता है |
इतना संताप सताता है,
अब नही सुनाया जाता है |
अब क्षमा करो इस पापी को,
यह शरण में तेरी आता है |
है ज्ञान हुआ इस शापित को,
तू दौड़ के क्यूँ न उठाता है |
इतना संताप सताता है,
अब सुख भी सहा न जाता है |
है हृदय भरा चीत्कारों से,
अब नहीं सुनाया जाता है |
ईश्वर इस संताप को मिटाए ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें!
सुंदर प्रार्थना ,परमपिता से ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सार्थक रचना , बधाई
जवाब देंहटाएंआह.....करूँ पुकार नीलकंठ से....गज़ब रचना
जवाब देंहटाएंnahi suni jati wo chikh pukar jo dil dehla de, nahi suni jati waqt ku chikhti pukar, nahi sunna mujhe kuch jo mere aspas h, jo jivan ko hila de........
जवाब देंहटाएंसभी को धन्यवाद....:)
जवाब देंहटाएं