खुशबू, भँवरे, बहार और गुलाब भी होगा
उसका नूर है यहाँ, तो आफताब भी होगा
उसकी कत्थई आँखों में हैं मस्तियाँ कितनी
उसकी आँखों का दूसरा नाम शराब भी होगा
मैं फकीर बनके रोज़ उसके दर पे जाता हूँ
जाने कब अपने घर वो वहाब भी होगा
ये पल मे बनते है पल ही मे टूट जाते हैं
मेरे ख्वाबो सा क्या कोई हबाब भी होगा
मेरी मुफ़लिसी पे तू अब न हंसा कर सुन ले
तेरी हर बात का इक दिन जवाब भी होगा
प्यार से कह रहें हैं हुक्मरानो बात मान लो तुम
अब भी न माने गर तुम तो इंकलाब भी होगा
ऐ खुदा ! क्या तू रोज़ मेरे गुनाह गिना करता है
मुझे आने दे तेरी नाइंसाफ़ियों का हिसाब भी होगा
अच्छा है...पढ़कर मज़ा आया.
जवाब देंहटाएंसाधु-साधु
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर
ऐ खुदा ! क्या तू रोज़ मेरे गुनाह गिना करता है
जवाब देंहटाएंमुझे आने दे तेरी नाइंसाफ़ियों का हिसाब भी होगा
ज़बरदस्त ये तो सीधा दिल पे उतर गया !
मेरे "मचान" पर भी आइये !
बहुत खूब......ब्लॉग जगत में स्वागत है अनुराग भाई :)
जवाब देंहटाएंnice .. .
जवाब देंहटाएंoh my GOD suprb
जवाब देंहटाएंoh my GOD suprb
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत ग़ज़ल
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