जाने क्यों तुम इसे
मौत का कुआं कहते हो
मेरे लिए तो इसका हर ज़र्रा
ज़िंदगी से बना है
कभी ध्यान से देखो
ये ज़िंदगी का कुआँ है
जैसे ज़िंदगी हमें
गोल गोल नचाती है
वैसे मेरी मोटर भी
चक्करों मे चलती है
रंग बदलता है जीवन
नित नए जैसे
वैसे ही ये अपने
गियर बदलती है
ध्यान भटकने देना
दोनों जगह मना है
कभी ध्यान से देखो
ये ज़िंदगी का कुआँ है
रफ्तार सफलता की
ऊपर ले जाती है
और आकांक्षा गुरुत्व है
संतुलन उस से ही है
यहाँ टिकता वही है
जो सामंजस्य बना चला है
कभी ध्यान से देखो
ये ज़िंदगी का कुआँ है
छोड़ो इन बातों को
ये सब तो बस बातें है
कभी आओ मेरे घर
मेरा घर देखो
इस कुयेँ के कारण ही
आज वहाँ भोजन बना है
फिर कैसे कहते हो तुम
कि ये मौत का कुआँ है
कभी ध्यान से देखो
ये ज़िंदगी का कुआँ है
सुन्दर प्रस्तुति, सुन्दर भाव , बधाई.
जवाब देंहटाएंwaah.....kya baat kahi hai vikram bhai.....bahut khoob
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति॥
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति॥
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