रविवार, 1 जनवरी 2012

मैं और मय


हुई फिर रात तन्हा ही ,हुआ फिर शाम वीराना |
कदम रुकते नहीं रोके ,चलू फिर आज मयखाना|
करू दो चार बाते जो ,मै! मय से प्यार के अपने |
मिटा दे दर्द पल भर मे ,पिऊ दो - चार पैमाना|
उठा  हर जाम होठो तक ,सभी खो जाए ख्वाबो मे  |
मै खोजू रात भर खुद को,मुझे फिर आज खोजाना|
हुई फिर रात तन्हा ही ,हुआ फिर शाम वीराना |
कदम रुकते नहीं रोके ,चलू फिर आज मयखाना|
शमा जलती रही हर रंग ,मेरे अरमान उसके संग|
हुये है ख़ाक अंदर तक ,बचा कोई अफ़साना|
नहीं कोई है अब मंजिल ,नहीं कोई है ठिकाना |
यही मयखाना अपना है ,कहाँ फिर और है जाना ?
 हुई फिर रात तन्हा ही ,हुआ फिर शाम वीराना |
 कदम रुकते नहीं रोके ,चलू फिर आज मयखाना|


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