रविवार, 18 मार्च 2012

सफ़र




हयात-ए-ग़म का ये सफर नहीं आसान मेरे यार, 
यहाँ आएंगे अभी और भी तूफान मेरे यार | 

ज़रा सी तीरगी से हो गए हो हिरासान मेरे यार, 
ज़िंदगी है ये तारीकियों का उनवान मेरे यार |

लड़ना मुश्किलों से है हर इंसान की किस्मत, 
इनसे मोड़ ले जो मुंह वो क्या इंसान मेरे यार??

आधे रास्ते से हारकर तुम लौट जाओगे ??
इस कदर न बनो तुम नादान मेरे यार |

कुछ पल ठहर तू, सांस ले फिर बढ़ा चल आगे  
थक जाये गर तू सफर के दौरान मेरे यार 

मौत तो आनी है, इससे डरता क्यूँ है तू ?
मौत आज़ादी और है ज़िंदगी ज़िंदान मेरे यार |

तू कर्म करता जा और न फल की चिंता कर,
खुद गीता में कहता है तेरा भगवान मेरे यार |

औरों के वादे कसमें सब भुला दो लेकिन, 
करो याद खुद से खुद का पैमान मेरे यार |


10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खुबसूरत ग़ज़ल हर शेर लाजबाब , मुबारक हो

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  2. jindagi ko ek sakaratmak soch deti behtarin rachna..sadar badhayee aaur amaantran ke sath

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