बुधवार, 3 नवंबर 2010

वहाँ अब घर नहीं बसते

वहाँ अब घर नहीं बसते, बस मकान रहते हैं |
नहीं बनते वहाँ कुनबे, बस संग कुछ इंसान रहते हैं |
वहाँ बाबूजी की डांट, माँ का प्यार नहीं है अब,
हर शाम बेटे का माँ को इंतज़ार नहीं है अब |
खाने की मेज पर वहाँ अब बतकही नहीं होती,
ये सब बातें तो शायद अब कहीं नहीं होती |
रिमोट की ख़ातिर वहाँ अब कोई नहीं लड़ता |
अमरुद की टहनी पर वहाँ कोई नहीं चढ़ता |
देर से आने पर अब कोई कुछ नहीं पूँछता |
दोस्तों संग बाहर जाने से पहले कोई कुछ नहीं सोचता |
वहाँ लोग दर्द और जज्बातों से बेदाग़ रहते हैं |
वहाँ अब दिल नहीं रहते बस दिमाग रहते हैं |

वहीँ कई मकानों के बीच मेरा भी घर रहता था,
पर अब नहीं, वो भी मकान बन गया है |
ना जाने क्या था और क्या अब हर इंसान बन गया है ?
वहाँ संग रह कर भी लोग एक दूजे से हो अनजान रहते है |
वहाँ अब घर नहीं बसते, बस मकान रहते हैं |

वहाँ अब घर नहीं बसते, बस मकान रहते हैं |

8 टिप्‍पणियां:

  1. वहाँ संग रह कर भी लोग एक दूजे से हो अनजान रहते है |
    वहाँ अब घर नहीं बसते, बस मकान रहते हैं |
    बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति|

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  2. आज के महानगर एवं शहरों की यही मार्मिक व्यथा है...
    पहले घरों में परिवार रहते थे,
    अब मकानों में लोग रहने लगे हैं...

    धन्यवाद इतनी मार्मिक अभिव्यक्ति साझा करने हेतु....

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  3. बहुत सुंदर व गहरी रचना| उज्जवल भविष्य की शुभकामनाये|
    दीपावली मंगलमय हो| शुभकामनाये|

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  4. बहुत सुंदर भावों को सरल भाषा में कहा गया है. अच्छी रचना

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  5. आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |

    फुर्सत मिले तो 'आदत.. मुस्कुराने की' पर आकर नयी पोस्ट ज़रूर पढ़े .........धन्यवाद |

    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  6. आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद .......

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  7. आप व आपके परिवार सहित सभी पाठको को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
    ब्लाग जगत की दुनिया में आपका स्वागत है। आप बहुत ही अच्छा लिख रहे है। इसी तरह लिखते रहिए और अपने ब्लॉग को आसमान की उचाईयों तक पहुंचाईये मेरी यही शुभकामनाएं है आपके साथ
    ‘‘ आदत यही बनानी है ज्यादा से ज्यादा(ब्लागों) लोगों तक ट्प्पिणीया अपनी पहुचानी है।’’
    हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

    मालीगांव
    साया
    लक्ष्य

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