दिल करता है अब हम रो दें,
बाँध तोड़ दें, जंहाँ डुबो दें |
चीख चीख कर सबसे कह दें,
बस बहुत हुआ, अब और नहीं |
रिश्ते इंसानों के और नहीं |
ये वो इंसान हैं, जो लड़ते हैं,
जाति धरम पर, क्रिया करम पर,
सच्चे झूठे मिथक भरम पर |
कब, क्यूँ, किससे लड़ ले ठौर नहीं |
बस बहुत हुआ, अब और नहीं |
रिश्ते इंसानों के और नहीं |
ये वो इंसान हैं, जो लड़ते हैं,
कभी मज़हब पर, कभी सरहद पर,
तो कभी दूसरे की बरक़त पर |
इनके रिश्तों को अब खो दें |
दिल करता है अब हम रो दें |
दिल करता है अब हम रो दें |
मैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंभाई,
जवाब देंहटाएंकैसे लिख जाते हो यार ऐसा सब..........
......ट्रेफिक जाम के लिए........ ज़िम्मेदार कौन ?
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट पर आपका स्वागत है
ये वो इंसान हैं जो लड़ते हैं
जवाब देंहटाएंकभी मज़हब पर कभी सरहद पर
तो कभी दूसरे की बरक़त पर
इनके रिश्तों को अब खो दें
दिल करता है अब हम रो दें
बहुत ही अच्छी रचना...संवेदना को व्यक्त करने में आप सफल हैं।
beautifull expression....congrats vikram bhai
जवाब देंहटाएंवाह अच्चा लिखते हैं आप....आज आपकी पहली रचना पढ़ रहा हूँ....मुग्ध कर दिया आपने..
जवाब देंहटाएंआप सभी कि सकारात्मक टिप्पणियों से बल मिलता है...प्यार बनाये रखें ....
जवाब देंहटाएंदिल करता है अब हम रो दें,
जवाब देंहटाएंबाँध तोड़ दें, जंहाँ डुबो दें |
चीख चीख कर सबसे कह दें,
बस बहुत हुआ, अब और नहीं |
रिश्ते इंसानों के और नहीं |
शुरुआत की पंक्तियों ने ही मोह liya ..........
दिल करता है अब हम has de
जवाब देंहटाएंbhai iske liye kuch likho.
अब इसके बाद क्या कहें।
जवाब देंहटाएं