बुधवार, 3 नवंबर 2010

दोस्त

दोस्त पाए हैं बहुत दोस्ती पाई नहीं
दोस्तों की भीड़ में तन्हाईयाँ छाई रही
चल पड़े थे इक सफ़र पर  दोस्तों के संग हम
आगे-आगे हम चले तो
दोस्त बोले, ''हैं पीछे ही हम''
ठोकर लगी तो पीछे देखा,  तो दिखा कोई नहीं.
दोस्त पाए हैं बहुत दोस्ती पाई नहीं
दोस्तों की भीड़ में तन्हाईयाँ छाई रही

ऐ ज़िन्दगी! तू भी कभी  यूँ रहम से तो काम ले
लडखड़ाऊँ मैं तो कोई  दोस्त आकर थाम ले
ज़िन्दगी तू ऐसा मंज़र  क्यों कभी लायी नहीं
दोस्त पाए हैं बहुत दोस्ती पाई नहीं
दोस्तों की भीड़ में तन्हाईयाँ छाई रही

2 टिप्‍पणियां:

  1. गजब कि पंक्तियाँ हैं ...

    बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

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  2. धन्यवाद संजय जी.........दीपावली की शुभकामनाएं

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