गुरुवार, 4 नवंबर 2010

तलाश


चल पड़ा हूँ इक सफ़र पर,
एक अनजानी डगर पर |
मजिल पता है, कि जाना कहाँ है |
पर रास्ता नहीं, वो कहीं खो गया है |
वो मंजिल मैं अब हर डगर ढूँढता हूँ |
कभी तो मिलेगी, अगर ढूँढता हूँ |

जज्बों में हिम्मत, इरादे बड़े हैं |
मगर राह में ऊंचे पर्वत खड़े हैं |
इन्हें पार करना भी मुश्किल बड़ा है |
मगर अब ये बंद भी जिद पे अड़ा है|
इन्हें लांघने का सबब ढूँढता हूँ |
कभी तो मिलेगा अगर ढूँढता हूँ |

किसी कि दुआएं मेरे साथ भी हैं|
कुछ संग चलते मेरे आज भी हैं |
कह नहीं सकता कि कब तक रहेंगे |
परिवर्तन कि धारा में ये भी बहेंगे |
फिर भी अंजाम से बेखबर ढूंढता हूँ |

कभी तो........ 

2 टिप्‍पणियां:

  1. कह नहीं सकता कि कब तक रहेंगे |
    परिवर्तन कि धारा में ये भी बहेंगे |
    फिर भी अंजाम से बेखबर ढूंढता हूँ |
    बहुत ख़ूबसूरत...ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ....मेरा ब्लॉग पर आने और हौसलाअफज़ाई के लिए शुक़्रिया..

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  2. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

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