मंगलवार, 12 जुलाई 2011

जवाब


ऐ खुदा ! इस बार तो मेरे ख़त का जवाब आ जाये
कागज़ के पैमाने में उनकी 'हाँ' की शराब आ जाये
ये मेरा वीराना भी हो जायेगा इक दिन गुलशन,
बस इक बार यहाँ वो हसीं गुलाब आ जाए

वो गुजरे भी मेरी गली से तो, पर्दा करके
कभी तो चेहरा वो, नज़र बेनकाब आ जाए

चांदनी रातो में भी मेरी दुनिया अँधेरी है
कभी मेरी छत पे भी तो महताब आ जाये

मैं फ़कीर-ए-इश्क खड़ा हूँ कब से दर पे
इक बार तो बाहर वहाब आ जाये

ऐ खुदा ! इस बार तो मेरे ख़त का जवाब आ जाये |

5 टिप्‍पणियां:

  1. इतनी बेहतरीन गजल लिखिएगा तो जबाब आ ही जएगा... खूब

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  2. इन्तेज़ार और थोडा इन्तेज़ार ... ये हसीनों को अदा है इन्तेज़ार कराने की .. जवाब जरूर आएगा ...

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  3. रंजना जी, दिलबाग जी, दिगंबर जी और चन्द्र भूषण जी ....बहुत बहुत शुक्रिया

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