१.जब जब आईने में क़ैद वो इंसान देखा |
तब तब खुद में छुपा हुआ इक शैतान देखा |
सारी दुनिया को दिखाता था गुलिस्तान-ए-नेकी जिसमें |
उसी दिल में दफन बदी का बियाबान देखा |
२.अपनी ही उलझनों में खोया सा हूँ मैं |
जागते हुए भी लगता है कि सोया सा हूँ मैं |
आँखें भी तो मेरी नम हुयी नहीं मगर |
लगता है जाने क्यूँ के रोया सा हूँ मैं |
३.उनकी जुदाई में तड़पते हैं इस क़दर |
खुद की नहीं खबर, करार है भी या नहीं |
तन्हाईयों ने हमें सताया कुछ कम न था |
उस पर ये कशमकश के उन्हें प्यार है भी या नहीं |
४.वो सिखाते हैं हमें आज ज़िन्दगी का सबक |
नहीं जानते के हमने हर तारीख देखी है |
देखा है सफेदपोशों के चेहरे पे नकाब |
गोरे चेहरों के पीछे लगी कालीख देखी है |
उनसे कह दो न रहे किसी गफ़लत में वो |
हमने हर सच के गले झूठ की तावीज़ देखी है |
५. ज़िन्दगी न और अब तू मेरा इम्तिहान ले |
जल जल के थक गया हूँ कसौटी की आग में |
६.ज़िन्दगी बता कैसे मैं तेरा ऐतबार कर लूँ
तू भी तो साथ मौत को छुपा कर के लायी है |
७.सीने में एक आग सी लगी है जो 'विक्रम' |
इश्क के शोलों से हैं वो, उसको बुझा रहे |
८.हारने का नहीं, है मुझे बस जीतने का दर |
हर जीत पर है मेरे दुश्मनों की तादाद बढ़ गयी |
९.मेरे शायरी के शौक ने मुझे देखो ला दिया है कहाँ |
अपने ग़मो पे भी अब तालियों की उम्मीद रखता हूँ |
१०.क्यूँ रहूँ बदनाम मैं बेवजह, बेक़सूर |
मेरी बदनामियों को इक वजह तो दे दो |
नींदें उजड़ी मेरी ख्वाब बेघर हुए |
अपनी नींदों में इन्हें थोड़ी जगह तो दे दो |
११.लम्बा है सफ़र इसमें कोई आसरा तो हो |
नजदीकिय न हो न सही, फासला तो हो |
तेरी गली में आके कभी, हो जायें हम बदनाम |
चाहत का नहीं नफरत सही, कोई माज़रा तो हो |
१२.आशियाना मेरा जलाकर देखो वो,
हैं रकीबों घर रौशन कर रहे |
मेरी खताओं की सजा मुझे देने के लिए
मुझ पर नहीं, हैं वो खुद पर सितम कर रहे |
१३.चाँद घटता रहा, रातें बढती रही
मैं तड़पता रहा, तू तड़पती रही
बात थी एक ही दोनों के दिल में मगर
मैं वो कह न सका, तू छुपाती रही
१४.जाते हुए तुमने हमें मुड़कर नहीं देखा |
अरे ऐसा भी क्या गुस्सा कि इक नज़र नहीं देखा |
नहीं देखे हैं हमने फूल कभी नाज़ुक तेरे जैसे |
मगर हाँ सच है कि तुमसा कभी पत्थर नहीं देखा |
१५.you are 'R' of my heart
without you my heart is incomplete
with you it keeps me alive
without you i am left with just 'heat'.
(कुछ छुट्टे और भी हैं, वो फिर कभी.....)
ye chillar bhi is mehngai ke zamaane mein ek garib ko kuch nahi to ek beedi aur machis la dete hai. Ha bhookh to nahi mitati lekin dhuye ke gubaar mein kuch der ko sahi saari chinta dhundhali zaroor ho jati hai.
जवाब देंहटाएंComing at the point these short lines are best ek baar padha tha aapki diary mein to chillar kuch kam the lekin aaj yaha kuch jyada hi dikhe to laga duniya mein abhi bhi chillarkhor bache hue hai.
Kya karein....aadat hai chillar jama krne ki....aur phir yun hi bikher kar unki khanak sun ne ki........aane ke liye shukriya...:)
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