रविवार, 17 जुलाई 2011

लोग

मुझसे मिलते ही मुझे सीने से लगा लेते हैं लोग
मेरी हर ग़ज़ल को होंठों पे सजा लेते हैं लोग
पर इन लोगों की याददाश्त है कमज़ोर बड़ी
मेरे पलटते ही मुझे दिल से भुला देते हैं लोग

अब तो वफ़ा की उम्मीद भी गफलत ही है
कहाँ किसी को वफ़ा के बदले वफ़ा देते हैं लोग

उजले बदन वालों के दिलों में घुप अँधेरा है
ज़मीर-ओ-जज़्बात के चराग बुझा देते है लोग

हबीबों और रकीबो की पहचान कैसे हो
नकाबों पे भी कई नकाब लगा लेते हैं लोग

है ये प्यार की दुनिया, है यहाँ प्यार बहुत
कि बड़े प्यार से प्यार को दग़ा देते हैं लोग

ऐसे लोगों को कैसे समझाओगे 'विक्रम '
ज़रा सी बात पे ही लाशें बिछा देते हैं लोग |

मुझसे मिलते ही मुझे...........

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

लोकप्रिय पोस्ट