दिल में जगे जज़्बात,
दबाऊं कैसे??
होंठों पे आई बात,
छुपाऊँ कैसे??
हर शाम जहाँ जाता,
और रात था बिताता
उस मय के दर-ओ-राह को
भुलाऊँ कैसे ??
कोसा तो मैंने खूब
ख़ुद को ख़ुदी में ख़ुद से
पर चाह कर भी मालिक,ख़ुद को
मिटाऊं कैसे ??
वो थी सदा-ए-जन्नत
माँगा उसे दुआ में
इंसान मैं, परी वो, जोड़ी
बनाऊं कैसे ??
दिल में जगे जज़्बात,
आखिर..........दबाऊं कैसे??
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें