सोमवार, 25 जुलाई 2011

इक जान ...



उनके हर इक बात में रहती है बस मेरी अदा | 
उनके हर इक ख्वाब में रहती है बस मेरी सदा |
लाख चाहें वो मगर, है भूलना मुमकिन नहीं |
उनके  हर इक साँस में रहती है बस मेरी दुआ |

राग छेड़े उनमे ऐसे जैसे छेड़े तार-ए-दिल |
बाँह में भर लेते मुझको जैसे दरिया को साहिल |
बोलते कि आ चलें उस पार इस दुनिया के हम |
हम भी कहते हँस के उनसे "जैसा चाहो तुम सनम" |


डर है लगता कि कहीं ये साथ न छूटे कभी |
ऐ मौला मेरे! करम मेरा ऐसे न फूटे कभी |
हो अगर ऐसा तो इक फरयाद सुन ले ऐ ख़ुदा,
 ये जिस्म गर छूटें तो हम इक जान हो जाएँ सदा |

 ये जिस्म गर छूटें तो हम इक जान हो जाएँ सदा |

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