शनिवार, 13 अगस्त 2011

बचपन की याद.....


है सावन की बरसात याद
है बचपन की हर बात याद 
जब काले बादल होते थे 
घनघोर घटा भी बरसी थी 
उस बारिश में हम भीगे थे
उन बूंदों को भी पकडे थे
फिर कागज़ की नाव बनाकर 
बारिश में दूर बहाते थे
उस नाव के पीछे-पीछे
कुछ दूर निकल भी जाते थे
जब कीचड़ में थे पैर पड़े 
गिरते-थमते गिर जाते थे
है  सावन की बरसात याद
है बचपन की  हर बात याद

तब के दिन थे कितने अच्छे 
 सारे अपने थे कितने सच्चे 
 अब तो दुनिया भी झूटी है
  हर एक को फरेब ने लूटी है
  जब बड़े हुए तो पता चला 
  थे दुनिया से अनजान भला 
   बचपन में न चिंता थी
   अपनी न कोई निंदा थी 
  वो रात सुहानी होती थी 
  माँ की लोरी सुनती थी
  फिर नींद की रानी  आती थी 
 सपनो का महल सजाती थी 
  न ऐसी रात कभी आई 
  न नींद की रानी फिर आई
 वो  सपने अपने टूट गए   
वो सच्चे सारे छूट गए 
 बारिश वो सहसा थम गयी
बस बचा  रहा तो वही डगर 
बस बचा  रहा तो वही शहर 
वो ख़ुशी कही अब रही नही 
बस बची रही तो याद वही 
बस बची रही तो याद वही....

है बारिश  की वो बात याद
है बचपन की हर बात याद...

9 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर रचना , खूबसूरत भावाभिव्यक्ति

    रक्षाबंधन एवं स्वतन्त्रता दिवस पर्वों की हार्दिक शुभकामनाएं

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  2. अच्छी कविता....ऐसे ही लिखती रहो......धन्यवाद ..:)

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  3. बचपन की यादें जीवन भर के लिये अनमोल धरोहर होती हैं.सुंदर भवाभिव्यक्ति.

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  4. सुन्दर प्रस्तुति ..बचपन की न जाने कितनी बातें सारी उम्र याद रहती हैं ..

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