सोमवार, 30 जनवरी 2012

अभी हारा नहीं हूँ मैं..


बेशक हार हुयी है मेरी
पर हारा नहीं हूँ मैं
मुझको लाचार न समझो तुम
बेचारा नहीं हूँ मैं
रुका हूँ, गिरा हूँ, ज़मीं पर पड़ा हूँ
पर ज़िंदा हूँ अभी,
किस्मत का मारा नहीं हूँ मैं
फिर उठूँगा, बढ़ूँगा,
फ़लक तक चढ़ूँगा
मैं  सूरज हूँ,
उगना ढलना आदत है मेरी
टूट के पल में  खो जाये
वो तारा नहीं हूँ मैं
बेशक हार हुयी है मेरी
पर अभी हारा नहीं हूँ मैं.....

रविवार, 1 जनवरी 2012

दिलहार चला आ |


मिलता हूँ हर इक रात मै, राहो पे अकेला |
मिलना जो हो दिलहार से, दिलहार चला |
कहता हूँ सबका दर्द मै , गा-गा के सुरीला |
सुनना जो हो खुद आह को , दिल हार  चला |
बैठेंगे सभी शान से ,बाटेंगे दर्द -ये -गम |
कहना जो हो गम आपको , दिलहार  चला |
खो जाओगे यू राह मे , भटकोगे दर- बदर |
रौशन करू गुम-राह मै  , दिलहार चला |
सुनता हूँ सब की बात मैं ,करता  हूँ  फैसला |
करना जो हो फ़रियाद तो , दिलहार चला |
मिलता हूँ हर इक रात मै, राहो पे अकेला |
मिलना जो हो दिलहार से, दिलहार चला |

प्रेम की कविता

कोई प्रेम की लिख दो कविता 
और  गाओ मन भा जाये|
मुझमे भर दो सुंदरता
मेरा अंग-अंग खिल जाये|

तुम चाहो तो मेरे मन की
दीवारों पे छा जाओ ,
मेरा हृदय है खाली कमरा
इस हृदय मे तुम जाओ|
कोई प्रेम की भाषा लिखता
मेरी आंखे जो बतलाये|
उसमे गाते तुम कविता
कोई और समझ पाये |
हर आस बंधी है तुमसे
मैं पास तेरे जाऊ|
ये सांस चले उस दम तक
तेरे साथ ही फिर मर जाऊ|
उस जीवन की क्या कविता
जिसमे तुमको पाये|
कोई प्रेम की लिख दो कविता
और  गाओ  मन भा जाये|
 


मैं और मय


हुई फिर रात तन्हा ही ,हुआ फिर शाम वीराना |
कदम रुकते नहीं रोके ,चलू फिर आज मयखाना|
करू दो चार बाते जो ,मै! मय से प्यार के अपने |
मिटा दे दर्द पल भर मे ,पिऊ दो - चार पैमाना|
उठा  हर जाम होठो तक ,सभी खो जाए ख्वाबो मे  |
मै खोजू रात भर खुद को,मुझे फिर आज खोजाना|
हुई फिर रात तन्हा ही ,हुआ फिर शाम वीराना |
कदम रुकते नहीं रोके ,चलू फिर आज मयखाना|
शमा जलती रही हर रंग ,मेरे अरमान उसके संग|
हुये है ख़ाक अंदर तक ,बचा कोई अफ़साना|
नहीं कोई है अब मंजिल ,नहीं कोई है ठिकाना |
यही मयखाना अपना है ,कहाँ फिर और है जाना ?
 हुई फिर रात तन्हा ही ,हुआ फिर शाम वीराना |
 कदम रुकते नहीं रोके ,चलू फिर आज मयखाना|


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