क्या कहूँ तुमसे कि मैं क्या हूँ
झूठ होगा जो कहूँ प्यार का दरिया हूँ
इंसानियत का हुनर अभी आया नहीं मुझमे
और हैवानियत से भी अभी थोड़ा जुदा हूँ
क्या कहूँ तुमसे कि मैं क्या हूँ
मैं हर दिन कुछ और बनके जिया हूँ
खुद की पहचान खो दी है मैंने
अपनी बहुत सी शाख्शियतो का आशियाँ हूँ
क्या कहूँ तुमसे कि मैं क्या हूँ
अपने टूटे ख़्वाबों का बाकी निशाँ हूँ
यूँ ही कुछ शेर लिख दिए हैं मैंने
उन्ही शेरों को हर पल में जी रहा हूँ
....
अब क्या कहूँ तुमसे कि मैं क्या हूँ????