हे प्रभु ! मेरी स्वप्न सुंदरी
अब तो यथार्थ बन आ जाये
उसको पाकर जीवन मे मेरा
मन हर्षित, पुलकित हो जाए
स्वेत वर्ण और केश स्वर्ण हो,
जो देखे चकरा जाये |
सुंदर, कोमल, मधुर, कर्णप्रिय
बोले तो मन भा जाये |
चले चाल सावन मयूर सी,
बल खा के इतरा जाये |
नयन मृगी से चक्षु हो दोनो,
मदिरा सा रस छलकाए |
खिले फूल, फुलवारी आँगन,
हल्का सा जो मुस्काए |
केश ढापते मुख को, जैसे
मेघ चन्द्र पे छा जाये |
फिर संवार उनको शर्माती,
जैसे कोई कली चटक जाये |
कर श्रृंगार जैसे वो निकले,
लगे कोई दुल्हन आये |
हृदय की वाणी चक्षु बोलते,
शीतलता चन्दन छाए |
अंग अंग में रंग भरा हो,
इन्द्रधनुष भी पछताए |
माथे पर यू गोल बिन्दु सा,
सूरज दूर नजर आये |
कर लिहाज यूं चले वो , जैसे
दंबे पाँव निंदिया आये |
ऐसा रूप हो सुंदर उसका
कोई न उस सम हो पाये |
हे प्रभु ! मेरी स्वप्न सुंदरी,
अब तो यथार्थ बन आ जाये |
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें .
s.n. shukla ji aur yashwant mathur ji tippadi ke liye dhannyawad
जवाब देंहटाएंBehtarin bhav pradhan kavita
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ,आपकी प्रार्थना जल्द स्वीकार हो ।
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंश्वेत वर्णीय और स्वर्ण केशीय स्वप्न सुंदरी आपको जल्द मिले....
बधाई...
very nice poem
जवाब देंहटाएंआप सभी सज्जनों को सधन्यवाद
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