गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

ख़त



जनवरी की सर्द रात, एक कम्बल 
और कुछ अटपटे ख़याल
थोड़ी सी मदहोशी, कुछ चाय के प्याले 
और मन मे उठे सवाल 
कुछ पुरानी यादें, और वो नज़्में 
जो तुमने गुनगुनायी थीं 
तुम्हारी बातें, और मेरी पुरानी गजलें 
जो मैंने तुम्हें सुनाई थीं 
मेरी गुस्ताख़ शरारत पे 
तुम्हारी हया भरी डांट
हमने बूढ़े पीपल पे लगाई थी 
जो लाल डोरी की गांठ 
कुछ खत जो कभी भेजे नहीं 
और वो बातें जो कही नहीं 
जिस्मों के ये फासले और
दिलों मे दूरिया जो रही नहीं 
वो बेचैनी मे बदली गयी करवटें 
और तनहाई मे भरी गयी आह 
वो पूनम के चाँद को देखकर 
तुमको छू लेने की चाह 
वो किताबों से निकले 
सूखे फूलों की महक 
तेरे चेहरे का ताब, 
तेरी साँसों की दहक
मेरे कुछ रंगीन ख्वाब, 
और आँखें तेरी शराब  


और भी बहुत कुछ मिला कर 
पकाया है जज़्बातों की आंच पर 
फिर कुछ देर ठंडा किया है 
रख के हसरतों के काँच पर।

कागज़ पे परोस कर 
इक ख़त तुम्हें भेजा है
ज़रा चख के ये बताना 
क्या नमक इश्क़ का सही पड़ा है??

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

प्यार





मैं तो कलाम-ए-इश्क़ का व्यापार करता हूँ
खुद भी बीमार हूँ, सबको बीमार करता हूँ 

मुझको दे जाता है वो शख्स हमेशा ही धोखा 
फिर भी भरोसा मैं उसका बार-बार करता हूँ 

देगी तू मौत मुझे इक तो दिन थक करके  
ज़िंदगी इतना तो तुझपे एतबार करता हूँ 

मेरा जनाज़ा न उठाओ उनको ज़रा आने दो 
दो घड़ी और रुक के उनका इंतज़ार  करता हूँ 

वो पूछते हैं, "प्यार करते हो कितना हमसे "
कम ही होगा जो कहूँ बेशुमार करता हूँ 

कैसे मैं छोड़ दूँ घर बार सब तेरी खातिर 
तुझसे ही नहीं माँ से भी प्यार करता हूँ  

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

स्वप्न सुंदरी



हे प्रभु ! मेरी स्वप्न  सुंदरी 
अब तो यथार्थ बन आ जाये 
उसको पाकर जीवन मे मेरा 
मन हर्षित, पुलकित हो जाए 

स्वेत वर्ण और केश स्वर्ण हो,
जो देखे चकरा जाये |
सुंदर, कोमल, मधुर, कर्णप्रिय
बोले तो मन भा जाये |

चले चाल सावन मयूर सी,
बल खा के इतरा जाये |
नयन मृगी से चक्षु हो दोनो,
मदिरा सा रस छलकाए  |
खिले फूल, फुलवारी आँगन, 
हल्का सा जो मुस्काए |

केश ढापते मुख को, जैसे
मेघ चन्द्र पे छा जाये |
फिर संवार उनको शर्माती,
जैसे कोई कली चटक जाये |

कर श्रृंगार जैसे वो निकले,
लगे कोई दुल्हन आये |
हृदय की वाणी चक्षु बोलते,
शीतलता चन्दन छाए |

अंग अंग में रंग भरा हो,
इन्द्रधनुष भी पछताए |
माथे पर यू गोल बिन्दु सा,
सूरज दूर नजर आये |

कर लिहाज यूं चले वो , जैसे 
दंबे पाँव निंदिया आये |
ऐसा रूप हो सुंदर उसका 
कोई न उस सम हो पाये |


हे प्रभु ! मेरी स्वप्न सुंदरी, 
अब तो यथार्थ बन आ जाये | 

रविवार, 9 अक्तूबर 2011

सावन आवा झूमि के


"घुमड़ घुमड़ के बदरा गावै
सावन आवा झूमि के
रिमझिम-2 परै फ़ुहरिया
तुमहू नाचौ घूमि के"

तुमहू नाचौ, हमहू नाची
नाचै वन बीच मोरवा
बिजुरी कड़कै, जियरा धड़कै
जेकरे मन मा चोरवा 

कबहुँ ताकना, कबहुँ झांकना 
जुगल प्रेम कै जोड़वा
कबहूँ नाद हो सभई साथ हो 
हर-हर भोले थनवा

चलै झूमि के हवा गगन मा
गावत सरसर धुनवा 
नदी लेति अंगड़ाई अइसन 
मगन न कई दे धनवा
तबहूँ मस्त हैं, पिये पस्त हैं 
दूध के साथे  भंगवा 
बरखा के संग गावें बम-बम 
हरियाली कै गनवा

कइसन-
"घुमड़ घुमड़ के बदरा गावै
सावन आवा झूमि के
रिमझिम-2 परै फ़ुहरिया
तुमहू नाचौ घूमि के"

संताप



इतना संताप सताता है, 
अब सुख  भी सहा न जाता है |
है हृदय भरा चीत्कारों से, 
अब नहीं सुनाया जाता है |

रुँध गया कंठ, हे नीलकंठ !
करुणा का अश्रु न भाता है |
अब करो अंत इस जीवन का,
कोई राह नहीं दिखलाता है |

इतना संताप सताता है,
अब नही सुनाया जाता है |

हे प्राणनाथ ! निष्प्राण हूँ मैं, 
अब कुछ भी नहीं लुभाता है |
इस शोक समाहित दुनिया में,
अब और रहा न जाता है |

इतना संताप सताता है,
अब नही सुनाया जाता है |

कुछ करो नाथ, इस तुच्छ साथ, 
अब साथ नही कोई आता है |
इक आस है तेरी दया सिंधु,
मुख गीत तेरा ही गाता है |

इतना संताप सताता है, 
अब नही सुनाया जाता है |

अब क्षमा  करो इस पापी को,
यह शरण में तेरी आता है |
है ज्ञान हुआ इस शापित को,
तू दौड़ के क्यूँ न उठाता है |

इतना संताप सताता है, 
अब सुख  भी सहा न जाता है |
है हृदय भरा चीत्कारों से, 
अब नहीं सुनाया जाता है |

लोकप्रिय पोस्ट