खुशबू, भँवरे, बहार और गुलाब भी होगा
उसका नूर है यहाँ, तो आफताब भी होगा
उसकी कत्थई आँखों में हैं मस्तियाँ कितनी
उसकी आँखों का दूसरा नाम शराब भी होगा
मैं फकीर बनके रोज़ उसके दर पे जाता हूँ
जाने कब अपने घर वो वहाब भी होगा
ये पल मे बनते है पल ही मे टूट जाते हैं
मेरे ख्वाबो सा क्या कोई हबाब भी होगा
मेरी मुफ़लिसी पे तू अब न हंसा कर सुन ले
तेरी हर बात का इक दिन जवाब भी होगा
प्यार से कह रहें हैं हुक्मरानो बात मान लो तुम
अब भी न माने गर तुम तो इंकलाब भी होगा
ऐ खुदा ! क्या तू रोज़ मेरे गुनाह गिना करता है
मुझे आने दे तेरी नाइंसाफ़ियों का हिसाब भी होगा