उसकी इस ख़ता की भी कोई सज़ा नहीं
मिलने का किया वादा पर वो मिला नहीं
वो हसीं बात आज उसने ही बोल दी यारो
जो मेरे दिल मे थी मैंने मगर कहा नहीं
हाल-ए-दिल खत में तुझे तो मैंने रोज़ लिखा
क़ासिद को खत दिया पर तेरा पता लिखा नहीं
मेरी खता है जो छूना तुझे चाहूँ मैं मगर
इतना हसीं है तू, क्या तेरी कोई खता नहीं ?
मुझपे पहला पत्थर किसी अपने ने उछाला था
और तो गैर थे मुझे उनसे कोई गिला नहीं
इन अमीरों के आगे हाथ क्यूँ फैलाये "विक्रम"
ये भी तो इंसान हैं साहब, कोई खुदा नहीं
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल हर शेर लाजबाब , मुबारक हो
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 26-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ
शुक्रिया सुनील जी....:)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया चन्द्रभूषण जी.....:)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना ,मुखर अभिव्यक्ति प्रशंशनीय है / शुभकामनायें जी /
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना... वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल..
जवाब देंहटाएंउदय जी, संजय जी, दीपिका जी एवं सदा जी.....आप सभी आदरणीय जनों का दिली शुक्रिया ....प्रेम और आशीर्वाद बनाए रखें....:)
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत गजल....बहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गज़ल विक्रम जी.
दाद कबूल करें..
अनु
पल्लवी जी, अनु जी ......बहुत बहुत शुक्रिया...:)
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