ज़माने बाद आज खुशियाँ दर पे आई,
चंद लम्हों की मुलाकात संग लाई ।
पहनकर सफ़ेद परियों सा चोला,
आईने के सामने अपनी लटो को खोला।
मिलन की बात पर हम निखर आए थे,
अचानक आईने में वो नज़र आए थे ।
कहे की ओढ़ लो कोई काली सी ओढ़नी ,
बन जाओ आज तुम मेरी रागिनी।
धड़कने तेज़ मध्यम सी होने लगी,
जब उनकी हथेली हमे छूने लगी ।
आ गए वो हमारे इतने पास,
जितना की धड़कन और होती है सांस।
आहिस्ता-आहिस्ता खुद में जकड़ लिए,
उनकी बाँहों में हम हद तक सिकुड़ गए ।
सहसा कोई आवाज़ कानों में पड़ी,
कोई पुकारा नहीं टिकटिकाई थी घड़ी।
यहीं पे वक़्त मिलन के ख़तम होंना था,
थे करीब इतने अब दूर होना था ।
फिर उन्ही सख्त राहों पे थे अकेले,
जहाँ पर मुस्कुराकर थे मिले।
वो पल बड़ा भारी सा गुजरा ,
हमारा साया साथ उनका छोड़कर उतरा।
अब हमारी राहें थीं जुदा-जुदा,
कसक उनको भी बहुत थी बाखुदा।
लगा हर ओर धुआं सा है,
कोई एहसास दिल में दबा सा है।
जिंदगी रुकने को थी,
साँसे थमने को थी।
उस पल मेरे दिल में बहुत था दर्द,
हवा ठंडी और मौसम था सर्द ।
खड़े थे स्तब्ध एकटक देखते,
काश ! हम उनको एक बार रोकते।
अपने एहसास को हमने लब्जों से सजा दिया,
हमने गम-ए-दुल्हन को सबसे मिला दिया।
उत्कृष्ट |
जवाब देंहटाएंवजन बढ़ रहा है पंक्तियो मे
जवाब देंहटाएंसुंदर
वाह ... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंbahut bahut dhanybad
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